अभी शबनम के कतरे जवां हैं, सुबह अंगडाई ले रही है
अमरुद के पेड़ पर बैठी चिड़िया रात की दुहाई दे रही है
झीने कोहरे में लिपटा कुछ ये शहर ठिठुरता बैठा है
सूरज से सुलगते शितिज़ को शायद अंगार से लपेटा है
कहीं शोर उठा है जीवन का, कुछ लोग हैं जल्दी जाग रहे
बच्चों को सोता छोड कर वो है रोजी के पीछे भाग रहे
कहीं चूलेह पर चड़ी चाय है महक सुबह की बाँट रही
अख़बारों की सुर्खियाँ राज का तिलिस्म है काट रही
फिर नया दिन निकला शुरू नयी एक होड
सब दौड़ पड़ेंगे लूटने सूरज के चारों छोर
अमरुद के पेड़ पर बैठी चिड़िया रात की दुहाई दे रही है
झीने कोहरे में लिपटा कुछ ये शहर ठिठुरता बैठा है
सूरज से सुलगते शितिज़ को शायद अंगार से लपेटा है
कहीं शोर उठा है जीवन का, कुछ लोग हैं जल्दी जाग रहे
बच्चों को सोता छोड कर वो है रोजी के पीछे भाग रहे
कहीं चूलेह पर चड़ी चाय है महक सुबह की बाँट रही
अख़बारों की सुर्खियाँ राज का तिलिस्म है काट रही
फिर नया दिन निकला शुरू नयी एक होड
सब दौड़ पड़ेंगे लूटने सूरज के चारों छोर
No comments:
Post a Comment