Wednesday, November 02, 2011

होने दो नया सवेरा

गुमसुम हो तुम

कोई तो बात होगी

ऐसे ही तो नहीं 

तुम्हारी 

हुई ख़ामोशी से मुलाकात होगी

शायद 

कोई दर्द उभर आया होगा

जिसने तुम्हे सताया होगा 

कुछ इस तरह ज़ज्ब्बत

उठे होंगे घटा बनकर

कि बरस कर यादों ने 

आँखों को भिगाया होगा

कोहरे में लिपट कर मांझी के 

सर्दी में ठिठुरते होगे तुम 

उलझी किन्ही ख्यालों में 

शायद होगे तुम गुम्म 

मगर 

कल कि रूठी रौशनी से 

अब क्योँ आज करे अन्धेरा

चलो कुछ तो बोलो तुम 

होने दो नया सवेरा

1 comment:

  1. चलो कुछ तो बोलो तुम

    होने दो नया सवेरा....


    नए सवेरे की आशा में... !! bahut badhiya..

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