गुमसुम हो तुम
कोई तो बात होगी
ऐसे ही तो नहीं
तुम्हारी
हुई ख़ामोशी से मुलाकात होगी
जिसने तुम्हे सताया होगा
कुछ इस तरह ज़ज्ब्बत
उठे होंगे घटा बनकर
कि बरस कर यादों ने
आँखों को भिगाया होगा
कोहरे में लिपट कर मांझी के
सर्दी में ठिठुरते होगे तुम
उलझी किन्ही ख्यालों में
शायद होगे तुम गुम्म
मगर
कल कि रूठी रौशनी से
अब क्योँ आज करे अन्धेरा
चलो कुछ तो बोलो तुम
होने दो नया सवेरा
कोई तो बात होगी
ऐसे ही तो नहीं
तुम्हारी
हुई ख़ामोशी से मुलाकात होगी
शायद
कोई दर्द उभर आया होगा
जिसने तुम्हे सताया होगा
कुछ इस तरह ज़ज्ब्बत
उठे होंगे घटा बनकर
कि बरस कर यादों ने
आँखों को भिगाया होगा
कोहरे में लिपट कर मांझी के
सर्दी में ठिठुरते होगे तुम
उलझी किन्ही ख्यालों में
शायद होगे तुम गुम्म
मगर
कल कि रूठी रौशनी से
अब क्योँ आज करे अन्धेरा
चलो कुछ तो बोलो तुम
होने दो नया सवेरा
चलो कुछ तो बोलो तुम
ReplyDeleteहोने दो नया सवेरा....
नए सवेरे की आशा में... !! bahut badhiya..