Wednesday, November 23, 2011

कभी तो याद मेरी आती होगी

तुम को
कभी तो याद मेरी आती होगी
धुंध से निकल कर परछाई मेरी
कभी तो गले लगाती होगी
तेरे बालों को सहलाती
उँगलियाँ तेरी
कभी तो मेरी बन जाती होंगी
पलकों पर सहमे सावन को
धीरे से बहलाती होंगी

आवाज मेरी
तेरे कानों में
कभी उतरती तो होगी सदा बना कर
मैं सोचता हूँ कैसे
तू उसे सुन पाती होगी

दर्द का तेरा- मेरा रिश्ता
तू कैसे उसे निभाती होगी

तुम को
कभी तो याद मेरी आती होगी
धुंध से निकल कर परछाई मेरी
कभी तो गले लगाती होगी

ख़त मेरे
मैं जानता हूँ,
तूने जला डाले सारे
उनसे उडती राख
तेरी आँखों में कभी तो जाती होगी
कालिक सी छोड़ देती होगी तेरी चेहरे पर
जब तू उसे हठाती होगी

कुछ भी तो
नहीं बचा अब
हम दोनों के दरमयान
सच बोल
कि ये बात भी
तुझको कभी सताती होगी

तुम को
कभी तो याद मेरी आती होगी

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