तुम गए
तो कोशिश बहुत की मैंने समझने की
की तुम बदले हो
या वक्त बदल गया
मैंने खुद को बदलने की भी कोशिश बहुत की
रंग बदला की शायद रंगत बदल जाये
नए एहसासों से दर्द पिघल जाये
किया जंतर मंतर ,जादू - टोना
अजमाया हर कोई खेल -खिलौना
झाडा- फूँका , गंडा - ताबीज़ बंधवाया
लेकिन मैं तुझको भूल न पाया
अब भी तेरी यादों में जल कल फ़ना हो रहा हूँ
उम्मीद की झूठी बैसाखियों पर
न जाने क्योँ राख के पुतले को ढो रहा हूँ
अब तो परछइयां भी शितिज़ चूमती हैं
और सच सूरज सा आसमान पर टंगा है
मगर उम्मीद उम्मीद उम्मीद ....
उम्मीद ने न जाने क्योँ अँधा कर दिया है
मैं जनता हूँ की गुजरा वक्त लौट के नहीं आता
मगर तुम वक्त तो नहीं जो लौट के न आ सको
यहाँ नहीं तो कहीं और सही
अभी नहीं
तो कभी
तुम आ कर मेरी साँसों में तितली बन कर बैठ जाओ
की मैं तुमको देख सकूं
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