मन
एक अनबुझी पहेली
कभी लगता सौत
कभी लगे सहेली
कभी हँसता,कभी रुलाता
कभी खोजता ,गुम हो जाता
कभी धूप कड़ी, कभी सर्द झड़ी
कभी ढलवा तो कभी चढाई खाड़ी
कभी अनजान शहर,कभी अपना गावं
रिश्तों के उसर, सम्बन्ध की छावँ
हो बड़ा जहाजी या छोटी नाव
चलना काँटों पर नंगे पावं
जीतो या हरो , फिर खेलो दावं
कभी लगता सौत
कभी लगे सहेली
मन
एक अनबुझी पहेली
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