Thursday, November 10, 2011

मन


मन 
एक अनबुझी पहेली 
कभी लगता सौत 
कभी लगे सहेली 
कभी हँसता,कभी रुलाता
कभी खोजता ,गुम हो जाता  
कभी धूप कड़ी, कभी सर्द झड़ी  
कभी ढलवा तो कभी चढाई खाड़ी
कभी अनजान शहर,कभी अपना गावं    
रिश्तों के उसर, सम्बन्ध की छावँ 
हो बड़ा जहाजी या छोटी नाव 
चलना काँटों पर नंगे पावं  
जीतो या हरो , फिर खेलो दावं 
कभी लगता सौत 
कभी लगे सहेली 
मन 
एक अनबुझी पहेली 

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