वक्त दुहरी चाल चलता है
जहाँ यथार्थ में बस आगे की और जाता है
यादों का भंवर लेकर पीछे मोड़ आता है
इंसान बीच में खड़ा "त्रिशंकु," बस देखता रह जाता है
यादों की विपरित दिशा में बहता है मानस मन
कर्म धरातल में बस आघे ही पिस्ता है मानव तन
डामाडोल सी कश्ती में कभी डूबता , कभी बचाता है
इंसान
बीच में खड़ा "त्रिशंकु," बस देखता रह जाता है
न आगे आघे की ओर है ,न कोई पीछे का छोर है
भूत भविष्य को जो संग बंधे दिखती न ऐसी डोर है
डोर के ऊपर नट सा चला के तिघ्नी का नाच नाचता है
इंसान
बीच में खड़ा "त्रिशंकु," बस देखता रह जाता है
वक्त दुहरी चाल चलता है
जहाँ यथार्थ में बस आगे की और जाता है
यादों का भंवर लेकर पीछे मोड़ आता है
इंसान बीच में खड़ा "त्रिशंकु," बस देखता रह जाता है
यादों की विपरित दिशा में बहता है मानस मन
कर्म धरातल में बस आघे ही पिस्ता है मानव तन
डामाडोल सी कश्ती में कभी डूबता , कभी बचाता है
इंसान
बीच में खड़ा "त्रिशंकु," बस देखता रह जाता है
न आगे आघे की ओर है ,न कोई पीछे का छोर है
भूत भविष्य को जो संग बंधे दिखती न ऐसी डोर है
डोर के ऊपर नट सा चला के तिघ्नी का नाच नाचता है
इंसान
बीच में खड़ा "त्रिशंकु," बस देखता रह जाता है
वक्त दुहरी चाल चलता है
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