Thursday, November 10, 2011

वक्त दुहरी चाल चलता है


वक्त दुहरी चाल चलता है

जहाँ यथार्थ में बस आगे की और जाता है
यादों का भंवर लेकर पीछे मोड़ आता है
इंसान 
बीच में खड़ा "त्रिशंकु," बस देखता रह जाता है

यादों की विपरित दिशा में बहता है मानस मन
कर्म धरातल में बस आघे ही पिस्ता है मानव तन
डामाडोल सी कश्ती में कभी डूबता , कभी बचाता है
इंसान
बीच में खड़ा "त्रिशंकु," बस देखता रह जाता है

न आगे आघे की ओर है ,न कोई पीछे का छोर है
भूत भविष्य को जो संग बंधे दिखती न ऐसी डोर है
डोर के ऊपर नट सा चला के तिघ्नी का नाच नाचता है
इंसान
बीच में खड़ा "त्रिशंकु," बस देखता रह जाता है

वक्त दुहरी चाल चलता है

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