कितनी नर्म है दूब ये,
कभी तुम नंगे पैर चलोगे ,तो जानोगे
ओस कैसे पिघलती है पैरों पर
इस अहसास को पहचानोगे
छु कर के देखो तुम,
पंख तितलियों के
रंगों की तपिश का मर्म करीब से पहचानोगे
कैसे सुलगते हैं
उम्मीद के अंगारों में हर पल
बिन बात किये फूलों से,
तुम कभी न जानोगे
जब भी सुनो हवाओं को
कोई गीत नया गूंजेगे
दिल के धडकने की सरगम
तब तुम पहचानोगे
कभी साथ चलो जो जुगनू के
रात चीरना सीखोगे
दुम पर रखे हुए दीपक का
गूढ़ तभी तुम जानोगे
हाथ की रोटी बाँट के देखो
भूख को तुम जानोगे
जो खुद जलोगे सूरज से तुम
पसीने की ठंडक पहचानोगे
हाथ बढाओ आघे जो तुम तो
साथ का संभल जानोगे
जो साथ उठाओ दर्द का कतरा
रिश्तों का मरहम पहचानोगे
जो जी कर देखो
हर एक पल को
जिंदगी तुम पहचानोगे
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