ऐसी मुश्किलें भी क्या हैं जो बता नहीं सकते
उलझने हैं ऐसे क्या जो सुलझा नहीं सकते
संग चल कर दो कदम कुछ बात करतें हैं
सिरे ढूँढने की कुछ तो शुरुवात करते हैं
मालूम है ये मुझको की मुश्किल तो है मगर
जिंदगी है छोटी और लम्बा है ये सफ़र
कब तलक यूँ सिमटे खुद में ही तुम रहोगे
जो वक्त ही बह गया फिर क्या करोगे
चलो थाम लो खुद की कलाई , और वक्त को काबू करो
में साथ दूंगा हर कदम,तुम अगर आघे बड़ो
No comments:
Post a Comment