हर वक्त मेरे वजूद को कुरेदती हैं तेरे यादें
तू अब भी मेरे रूह के अतर में बांकी है
बस जद्दो - जहद के साये में कटते हैं रात दिन
सांस ले रहा हूँ ...इतना ही काफी है
मौजों को रोक ले जो साहिल बंधाये थे
बड़ी कोशिशों से मैंने पुश्ते बनाये थे
रह रह के लेकिन रिस्तीं रही यादें
पुश्ते रहे खड़े और मैं डूबता रहा
जी रहा हूँ अब भी कतरों में मैं उलझ कर
है कौन सा मेरा सिरा तुझ से जुड़ा न जाने
मैं सुलझाता जा रहा हूँ
पर गाँठ बढ रही हैं
सिमट गया हूँ शायद मैं तेरे यादों के मुन्तज़िर
बहने की अब तो ख्वहिश करना भी कुफ्र है
घुल रहा हूँ मैं धीरे धीरे ठहरे सुकून में
बस याद तू रहे तो ...इतना भी काफी है
रह रह के लेकिन रिस्तीं रही यादें
ReplyDeletekhubsurat....