जो परदे हटाया तो सूरज उसकी आँखों में उतर गया
और उसकी मुस्कान से सवेरा बिखर गया
नन्ही हथेलियों ने रोशनी ढंकने की कोशिश तो की मगर
दिन फिसल कर उसके चेहरे पर निखर गया
बड़ी संजीदगी से उसने मौन के सिक्के संभाले थे
जो उछले तो उछले यूँ
की कौन जाने कौन उछला,कौन सा किधर गया
थोड़ी सी चाशनी में ऐसा लपेटा रात दिन
जलेबियों से झूलता न जाने वक्त कब गुज़र गया
जलेबियों से झूलता न जाने वक्त कब गुज़र गया
You are blessed,Skand
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