Wednesday, September 07, 2011

आराधना के लिए ...

थोड़ी सी नाराजगी थी उसको , की रात भर बात नहीं की

गुस्से का लिहाफ ओडे ठिठुरती रही वो रात भर 

गोद में उम्मीद का तकिया दबाये 

की कोई तो उसको मनाये 


बड़ी लम्बी लिस्ट थी शिकायत की उसकी 

की रात को देर से आते हो 

होते तो घर पर हो लेकिन ,मुझे ढूंढ नहीं पाते हो 

यूँ ही रहा जाती हूँ मैं तुमसे जुडी अपनी दुनिया समेटती 

मगर तुम ही तो कहीं खो जाते हो 

तुम से बात नहीं होते और नीद नहीं आती है 

सपनो की मुफलिसी बड़ी है 

अगर जीना है ऐसे ही तो फिर मुझे क्या पड़ी है 


मैं जनता हूँ वो फिर सुबह तक बदल जाएगी 

बदली नाराज़गी की पिघल जाएगी 

चेहरे पे होगे उसका एक नया सवेरा 

फिर से पूनम के चाँद में ढल जाएगी


1 comment:

  1. aaradhna is sure one lucky lady to have someone like you there to write poetry for her

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