गुमसुम
रात है बैरन ये
न जाने कब फिर से सवेरा हो
गुपचुप
दायरों में सिमटे
न जाने कब ख़तम ये अँधेरा हो
रौशनी... गुमशुदा
वक्त है... लापता
बस धुंध है लपेटे जा रही
कतरा ...
कतरा ...
घुल रहा हूँ में बारिशों में
और आंखें है बही जा रही
शायद ...कोई वो सपना था
तुम सा ...कोई जो अपना था
हर सांस हम जीये जा रहे थे
रंग के .. अक्स में
तेरे हम मुस्कुरा रहे थे
न जाने कब ये मुस्कुराहटें पिघल गयीं
राख बन के सभी चाहतें बिखर गयीं
बस धुंध है लपेटे जा रही
कतरा ...
कतरा ...
घुल रहा हूँ में बारिशों में
और आंखें है बही जा रही
अब ना उम्मीद ना कोई गम है
हम भी अब कहाँ ...........हम हैं
हर सांस क़र्ज़ की जीये जा रहें हैं
दर्द है ... तो भी क्या
तुझे याद कर के मुस्कुरा रहे हैं
रौशनी... गुमशुदा
वक्त है... लापता
बस धुंध है लपेटे जा रही
कतरा ...
कतरा ...
घुल रहा हूँ में बारिशों में
रात है बैरन ये
न जाने कब फिर से सवेरा हो
गुपचुप
दायरों में सिमटे
न जाने कब ख़तम ये अँधेरा हो
रौशनी... गुमशुदा
वक्त है... लापता
बस धुंध है लपेटे जा रही
कतरा ...
कतरा ...
घुल रहा हूँ में बारिशों में
और आंखें है बही जा रही
शायद ...कोई वो सपना था
तुम सा ...कोई जो अपना था
हर सांस हम जीये जा रहे थे
रंग के .. अक्स में
तेरे हम मुस्कुरा रहे थे
न जाने कब ये मुस्कुराहटें पिघल गयीं
राख बन के सभी चाहतें बिखर गयीं
बस धुंध है लपेटे जा रही
कतरा ...
कतरा ...
घुल रहा हूँ में बारिशों में
और आंखें है बही जा रही
अब ना उम्मीद ना कोई गम है
हम भी अब कहाँ ...........हम हैं
हर सांस क़र्ज़ की जीये जा रहें हैं
दर्द है ... तो भी क्या
तुझे याद कर के मुस्कुरा रहे हैं
रौशनी... गुमशुदा
वक्त है... लापता
बस धुंध है लपेटे जा रही
कतरा ...
कतरा ...
घुल रहा हूँ में बारिशों में
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