घुटी परछाईयां... नम हैं
सूरज की गैर हाजरी में काई दीवारों पर चढ़ी जा रही है
पत्तों के छोर पे बूँदें ... ठिठक गई हैं
और आवारा चीटियाँ
अपने काल पर इठलाती मेरे आँगन में आ जाती हैं अक्सर
तितलियों से पेच लड़ने
अक्सर दिनों में घनघोर अँधेरा छा जाता है
और रातों का अँधेरा चीरती हैं कौंधती बिजलियाँ
बादालों की दादागिरी है सरासर
की सूरज भी छिप छिप के निकलता है
और जब ये बादल बरसते हैं .
बारिशों का मौसम है
और सब कुछ हरा है
सूरज की गैर हाजरी में काई दीवारों पर चढ़ी जा रही है
पत्तों के छोर पे बूँदें ... ठिठक गई हैं
और आवारा चीटियाँ
अपने काल पर इठलाती मेरे आँगन में आ जाती हैं अक्सर
तितलियों से पेच लड़ने
अक्सर दिनों में घनघोर अँधेरा छा जाता है
और रातों का अँधेरा चीरती हैं कौंधती बिजलियाँ
बादालों की दादागिरी है सरासर
की सूरज भी छिप छिप के निकलता है
और जब ये बादल बरसते हैं .
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तो जिंदगी फिर से अंगड़ाई लेते है
तो जिंदगी फिर से अंगड़ाई लेते है
बारिशों का मौसम है
और सब कुछ हरा है
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