कोहरे में लिपटा हुआ सवेरा ,खिड़की से झाँकता है
थोड़ी सी सर्दी ,चुपके से चली आती है लिहाफ में
गुपचुप पड़े शीशे के ऊपर पानी से बनी लकीरें हैं
लटकी हुई दीवारों पर भूली बिसरी तस्वीरें हैं
घर के कोने में पड़ा हुआ एक पुराना छाता है
किस्मत है उसकी की कोई उसे उठाने को नहीं आता है
दरवाजे पर टंगी हुई बरसाती अब भी गीली है
ना जानें कितने बरसातें अब तक उसनें जी लीं हैं
गम बूटों में जमा हुआ सदियों से बरसा पानी है
ये बरसातें भी पहन उसे निभानी हैं
जिंदगी बरसातों में कितना थम थम के सरकती है
बारिश की एक झड़ी फिर से छत पर थिरकती है
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