Saturday, July 16, 2011

for Nirmal Da

यूँ तो
तू नहीं है
मगर फिर भी कहीं है
किसी नुक्कड़ पे
किसी मोड पे खड़ा
दीवाल पर किसी पोस्टर सा जुडा
रेडिओ पर बजती किसे पुरानी धुन में झूमता
मिटटी से लिपटे छोटे बच्चों को चूमता
हारमोनियम के गड़बड़- झाले पर साज सजाता
मेज की हर थाप से धड़कन मिलाता
घुमड़ते बादलों को उँगलियों से बांध देता
शोर को भी बंदगी का साज देता
कठपुतलियों को जान देता
मन में जो वो ठान लेता
आँखों की गहराई से कहता कहानी
मुस्कराहट की भी क्या थी रवानी
मायूस रंगमंच पर
जब पर्दा उठाता है सन्नाटे
जनता हूँ मैं , तू नहीं है
फिर भी
दिल कहता है
तू यहीं है
तू यहीं है

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