सुबह लिपटी हुई है मिटटी की सौंधी खुशबू से
लगता है साथ सवना लेकर के आए हो
लगी हैं मोतिया गिरने ,लगता है मुस्कुराए हो
हरा चरों तरफ है जो है तुम्हारे होने से
ऐसा कौन सा जादू है जो लेकर के आए हो
ये चिड़ियों का चहकना इतना बेतकल्लुफ होकर
कानों में उनके तुमने क्या फुसफुसाया है
ऐसा भी क्या मंतर है की सूरज इन्द्रधनुष लेकर
खुद ही चलकर मेरी देहरी पे आया है
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