Saturday, July 30, 2011

जिंदगी को ... बहने दो

आसमन बहुत ऊँचा है,हैं सितारे बहुत दूर
फिर सीधी खड़ी चढाई क्यों चढ़ना है जरूर
जितने भी ऊपर जाओगे, किसी और को ऊपर पाओगे
कब तक आंखिर तुम ,कितना जोर लगाओगे
साँसों को गिरवी रख कर , चलो सब से ऊपर पहुँच गए
दो ही हैं हाथ मिले हैं सबको ,कितना समेट तुम पाओगे
ऊपर गहरा सन्नाटा है , हवा भी थम जाती है
धुप नहीं है थोड़ी सी भी , ठण्ड भी जम जाती है
नपी तुली है जिंदगी , अब जी लो... या ...जला लो
कल की अंधी चाहत में, आज को दावं लगा दो
जो आज नहीं हो जी सकते , कल क्या जी पाओगे
और सब से ऊपर पहुच गए , फिर कहाँ जाओगे
चलो ...ये पागलपन अब रहने दो ...
खुद को... खुद से ...आजाद करो
और
जिंदगी को ... बहने दो

1 comment:

  1. बहुत ही खूबसूरत और सारगर्भित कविता !! बड़ी सरलता से तुमने ज़िन्दगी की आपाधापी के खोखलेपन को दर्शा दिया है .

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