Monday, July 11, 2011

फिर कभी लौट कर आएगी वो सुबह मेरे देहलीज पर

फिर कभी लौट कर आएगी वो सुबह मेरे देहलीज पर
और आँखों से ओस के मोती बनकर
अँधेरा पिघल जायेगा
तेरे नूर से रोशन होगा सूरज का हर एक कतरा
मेरी रूह में जो रहात बन उतर जायेगा
थाम लेगा डोरे तूफानों की अपने हाथों में
वक्त के दरया से पेच लड़ायेगा
जो पतंग कट गयी
तो उड़ते शेह्तीरों की हमजोली होगी
गर वक्त थम गया
तो क़यामत का सबब होगा

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