गुब्बारों में उम्मीद भर कर मैं उन्हें देखता रहा
की न जाने कब वो आकाश चूमेंगे
नीले- पीले- लाल- नारंगी
यकीन से आपस में बंधे
वो जहाजी
चल पड़े थे निश्चल अन्नत आकाश में
बादलों से गुत्थम-गुत्था करने
पवन नाराज होती जो
वो अपनी राह सुलझाते
शालीनता से वो
बढे चले जाते
असीम ...अन्नत ... आकाश में आघे
वो सिकुड़ते रहे
गगन फैलता रहा
टकटकी लगाए
हौंसलों की उड़ान को
में सोखता रहा
फिर न जाने वो कब आकाश हो गए
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