Saturday, April 09, 2011

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बड़े बेतुके अंदाज़ में वो मुझ से बोली,चलो सिगरेट सुलगाये

क्या पता कल रहे न रहे जिंदगी का काश लगायें

मुझको पता है, वो बोली,की तुम सिगरेट नहीं पीते हो

उम्र घटती है इस से , पर तुम कहाँ जीते हो

यूं तुम थामे रहते हो , ये जिन्दगी थोड़ी है

चलने वालों ने ही अपने जिन्दगी मोडी है

इस माचिस को देखो, जल के राख हो जाएगी

बस एक लौ है इसकी जो काम आयेगी

चाहे तो इस लौ से फौलाद को गला लो

या इसे फैंक दो आँगन में और अपना घर जला लो

मैं जानती हूँ की मैं सरफिर बाते करती हूँ

फ़िक्र है तुम्हारी इसलिए मैं लडती हूँ

अब तुमको अच्छा लगे या बुरा मैंने तो दोस्ती निभानी है

जो कम तुम्हारे न आए तो ये रिश्ता बेमानी है

गम है जितना थूक दो , चाहे तो आसूँ बहलो


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