Thursday, April 14, 2011

सुबह लौट आई है...

सुबह लौट आई है...
बुरांश की लालिमा से अरुणिमा लजा रही है
बांज के नए पत्ते अंगड़ाई ले रहे हैं
और कोएल सूरज का पहाडा रट रही है
काफल के पेड़ों पर सोए लंगूर जाग गए है
और रोशनी से नहा रहे हैं
झंडी धर पर स्थापित गोल्ज्यू के दरबार में
नंदा देवी से लौटी हवाएं घंटियाँ बजा रही हैं
और इस कीर्तन से मुग्ध सोनजुही की बेल
सहर की महक लूटा रही है
सुराही के पेड़ों पर कव्वों का कौतीक जमा है
वो बीते दिन की लूट का हिसाब कर रहे हैं
ओस के चद्दर से लिपटी दूब सूर्य नमस्कार कर रही हैं
हर तरफ उल्लास है
सुबह लौट आई है...

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