Tuesday, March 15, 2011

कल ...२

अब भी शहर की दीवालों पर तेरा नाम लिखा है
जीता था हार कर भी तू जिसमें
गली कूचों में वो किस्सा तमाम लिखा है

उन रंगों में अभी तक हाथों की नमी है
जिनसे थे तूने थी महफ़िल सजाई
वो कागज अभी तक है उम्मीद से कोरे
कहा था लिखेगा तू जिन पे रुबाई

धुवां पहले काश का,वो सिगरेट के छल्ले
रम के वो बोतल, जेब के टल्ले
वो मुफलिस रईसी,वो फांके के जौहर,
वो हिम्मत की ताकत, वो कुबब्बत के शौहर
वो तेरे लडखडाना , फिर गिर के संभालना
मंजिल चूमने को घर से निकलना

नुक्कड़ के पनवाड़ी ने अब भी खता तेरे गुलफाम लिखा है
अब भी शहर की दीवालों पर तेरा नाम लिखा है
जीता था हार कर भी तू जिसमें
गली कूचों में वो किस्सा तमाम लिखा है

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