Tuesday, March 15, 2011

कल ...१

मेरे कानों में चुपके से तुमने जो बात कही थी
मानता हूँ अब मैं की वो बात सही थी
कितनी थी की मिन्नतें तुमने मुझसे
फुर्सत से मुझको समझाया था
पर मैं हठीला फिर भी
एहसास को उस न समझ पाया था
फिर ऐसे बहे हम समय की नदी में
फिर मिल न पाए कभी एक सदी में
तुम अब कहाँ हो
मैं अब कहाँ हूँ
तुम्हें याद करता हूँ
जब भी जहाँ हूँ
गलती थी मेरी मैं मानता हूँ
फिर हम मिलेंगे ये जानता हूँ
जब मिलेंगे हम मुस्कुराएंगे
और फिर गले लग जायेंगे

For Sweeta and Lucky

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