Sunday, May 21, 2017

मेरे घर चले आना

जब जाड़े कोहरे का स्वेटर पहने निकालेंगे
और अलसाया सूरज अपनी आँखें मलता हुआ सुबह देर से जागेगा

जब गन्ने की फसल कट चुकी होगी
और गुड़ की मीठी मीठी खुशबू से तराई महकेगी

जब कोसी सूख जाएगी
और रामगंगा सिमट कर उसका इंतजार करेगी

जब पत्तथर चट्टा की मोड़ पर अमरूदों का उर्स लगेगा
और टाँडा के जंगल टीक के पत्तों से पट जाएंगे

जब दोगाँव मे रोड़ की सीलन सूखने से इंकार कर देगी
और बल्दियाखान ठिठुर ठिठुर कर नैनीताल को हल्द्वानी बहते देखेगा

जब ड़ाँठ में सन्नाटा बैठ कर ताश खेलेगा
और चाईनापीक का सफेद झंडा बर्फ का इंतजार करेगा

तुम मेरे घर चले आना
हम धूप में बैठ कर नींबू सानेंगे और वसंत की बातें करेंगे

@ ना शोना के पैराहन , ना मीठा के पैर

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