एक दिन
जब मेरी उँगलियाँ कट जाएंगी
और जुबान को फालिज़ पड़ जाएगा
मैं कविताएं नहीं लिखुंगा
कहीं किसी पागलखाने में बैठ कर
आसमान से बातें करूंगा
बातें जो कोई सुन नहीं सकेगा
तब ना जाने कितनी कविताएं
बेमौत मारी जाएंगी
और मेरे मन के शमशान में उनका जौहर होगा
जब धू धू करती चिता के धुएँ में
किरदार चित्कार लगाएंगे
मैं दिल खोल कर हंसुगा
मरो सब
तुमने मुझको कितनी मौतें मारा है
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