Sunday, April 23, 2017

गोलज्यू का धोड़ा

चित्तई थे पहुँचे,गोलज्यू
लेने लोक अदालत
भूख प्यास से पतली हो गई
थी घोड़े की हालत

जाम कचहरी लगी हुई थी
जम कर वाद विवाद
सोचा घोड़े ने ले ले वो
हरी घास का स्वाद

आस पास की बस्ती में
पहला नौला जो आएगा
वहीं बैठ के पानी पी कर
वो थोड़ा सुस्ताएगा

चार कदम पर चार गाँव है
भरे हुए आबाद
जाम कचहरी लगी हुई थी
जम कर वाद विवाद

पहले गाँव मे नाल टूट गई
ईंटों पर चलते चलते
दूजे में भी भूखा रह गया
पैर वो मलते मलते

गाँव तीसरा जगमग मंजर
फसल सी सरिया, खेत थे बंजर
चौथे में भी लगे थे खंजर
भूख से हिल गए अस्थी पंजर

प्यास में बहका एड़ लगाई
पहुचाँ नदी पनार
खीं खीं कर के खीस निपोरे
थी पानी की धार

देख के नदिया की गुरबत को
घोडा कुछ थर्राया
मेढ़क बोला सोने दे
तू बादल क्यों नहीं लाया

भूखा प्यासा घोड़ा टक टक
चढ़ने लगा पुयाल
फिसल फिसल कर गिरते पड़ते
बुरे हुए थे हाल

जैसे तैसे खींच खाँच कर
लौटा भगवन के धाम
पूछ खिंच कर अर्जी बाँधी
वो पहला था काम

आए गोल्ज्यू तो वो बोला
मुझको न्याय दिलाओ
कहीं बची है हरी घास तो
फिर तुम मुझे हिलाओ

लोह लक्कड़ ईंट के नीचे
दरक रहे पहाड़
कुछ तो भगवान काज करो
फूँक करो या झाड़

अपने गले की मैं ये घंटी
मंदिर में चढ़वाऊंगा
जिस दिन बारिश में भीग भीग कर
चित्तई लौट कर आऊंगा

तुम ठहरे जो कोतवाल
अब करो दूध का पानी
रोपो कुछ एैसा जो ठहरो
पानी और जवानी

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