Tuesday, August 19, 2014

अब रहने भी दो कहना - सुनना

अब रहने भी दो
कहना - सुनना

ना कुछ उधेड़ो
ना कुछ बुनना

जाने दो उस बात को
क्यों नींद ना आये रात को

जो सिलवट आई 
रहने दो
जो बहना है
बहने दो
जो उलझ गया है
क्यों सुलझाना
पूछे क्यों रास्ता
जिस दर नहीं जाना
क्यों इल्लत दें ज़ज़्बात को (इल्लत -- दोष)
जो नींद न आये रात को

जाने दो उस बात को

टूटा
फिर से है नहीं जुड़ना
टेड़ा मेड़ा
फिर क्यों मुड़ना
जो फटा हुआ है
क्यों सिलवाना
फिर से क्यों
पैबंद लगन
क्यों भूलें फिर औकात को
जो नींद न आये रात को

जाने दो उस बात को

ना कुछ उधेड़ो
ना कुछ बुनना

अब रहने भी दो
कहना - सुनना 

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