Saturday, July 05, 2014

दिन चढ़ गया

दिन चढ़ गया

सूरज
बादल से
लड़ गया

बोला
बहुत हुआ
अब ये हठ ये तेरा
अब मुझको मुँह दिखलाने दो
चलो हटो
तुम जाओ
मुझको
थोड़ी धुप फ़ैलाने दो

कब तक
तुम बरसोगे
पानी
कितना और भिगाओगे
बाढ़ बनोगे
नदी चढ़ोगे
मिटटी को पुश्त बहाओगे

बहुत हुआ
प्रपंच
तुम्हारा
मुझको
तुम मुस्काने दो
दिन निकला है
नया नया सा
मुझको पैर फ़ैलाने दो

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