Friday, December 06, 2013

रोशनी

ये जानता हूँ 
मैं 
कि 
रोशनी 
सहेजी नहीं जाती 
कितना भी जतन कर ले कोई 
हिस्से नहीं आती 
रौशनी 
तो रौशनी है 
बांध नहीं पाती 
रिश्तो कि कोई डोर उसे 
छू कर नहीं जाती 

फिर भी 
ना जाने 
क्यूँ कभी क्यूँ 
होता है ये एहसास 
कि रौशनी से जोड़ लूं 
अपनी 
मैं 

एक साँस

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