ये जानता हूँ
मैं
कि
रोशनी
सहेजी नहीं जाती
कितना भी जतन कर ले कोई
हिस्से नहीं आती
रौशनी
तो रौशनी है
बांध नहीं पाती
रिश्तो कि कोई डोर उसे
छू कर नहीं जाती
फिर भी
ना जाने
क्यूँ कभी क्यूँ
होता है ये एहसास
कि रौशनी से जोड़ लूं
अपनी
मैं
एक साँस
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