मैं
तुझसे
दूर भी जाऊँ
तो
जाऊँ कहाँ
बता
तुझ से ही
मैं
मुकम्मिल
तू ही
मेरा पता
इतनी भी
बेरुख़ी
तू
मुझसे
तो
ना जाता
ऐसी
भी क्या हुई है
मुझ से
कोई ख़ता
जो
इलज़ाम
है कोई
तो
मुझको
दे सज़ा
तुझे
मंज़ूर
जो भी हो
मेरी
वही रज़ा
मैं
तुझसे
दूर भी जाऊँ
तो
जाऊँ कहाँ
बता
तुझ से ही
मैं
मुकम्मिल
तू ही
मेरा पता
तुझसे
दूर भी जाऊँ
तो
जाऊँ कहाँ
बता
तुझ से ही
मैं
मुकम्मिल
तू ही
मेरा पता
इतनी भी
बेरुख़ी
तू
मुझसे
तो
ना जाता
ऐसी
भी क्या हुई है
मुझ से
कोई ख़ता
जो
इलज़ाम
है कोई
तो
मुझको
दे सज़ा
तुझे
मंज़ूर
जो भी हो
मेरी
वही रज़ा
मैं
तुझसे
दूर भी जाऊँ
तो
जाऊँ कहाँ
बता
तुझ से ही
मैं
मुकम्मिल
तू ही
मेरा पता
सुन्दर...!
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