Saturday, November 16, 2013

कई बार सोचता हूँ

कई बार सोचता हूँ 
तेरे आँगन निशात कर दूं 
खुशियाँ लाकर सारी 
दरो - दीवार कर दूं 
कि जहाँ भी तेरी नज़र जाये 
राहत तुझको चूमे 

और तू मुस्कुराये

No comments:

Post a Comment