मैं कहाँ भूला हूँ
वो सर्दियों का मौसम
जो यूँ ही गुजर गया था
इंतज़ार में
ना तुम चेहरा थे
ना मैं सूरत
फिर भी गुंथे हुए थे हम
शब्दों के तार में
ना तुम ने सवाल पूछे
ना मैंने जवाब मांगे
कितना अपनापन सा था
उस ऐतबार में
मैं कहाँ भूला हूँ
वो सर्दियों का मौसम
जो यूँ ही गुजर गया था
इंतज़ार में
जो यूँ ही गुजर गया था
इंतज़ार में
ना तुम चेहरा थे
ना मैं सूरत
फिर भी गुंथे हुए थे हम
शब्दों के तार में
ना तुम ने सवाल पूछे
ना मैंने जवाब मांगे
कितना अपनापन सा था
उस ऐतबार में
मैं कहाँ भूला हूँ
वो सर्दियों का मौसम
जो यूँ ही गुजर गया था
इंतज़ार में
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