Sunday, October 27, 2013

अब उम्र हो चली है शायद

कल बहुत देर तक अपनी ऐनक ढूंढता रहा 

यूँ ही 
गाहे - बगाहे 
सार घर उलट पलट डाला 
दराजें छान मरी 
सारी अलमारियां खाली कर दीं 
सोफे के पीछे 
बिस्तरे के नीचे 
खिडकियों में 
रोशनदानों में
धुलाई के कपड़ों में
कभाड के सामानों में

फिर भी , ढूंढ ना पाया
बैठ गया
मुहँ लटकाया
तभी बेटी ने बताया
अपने अपना चश्मा
गले में है लटकाया

अब उम्र हो चली है शायद

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