Monday, June 24, 2013

तुम इसे लोकतंत्र कहते हो

तुम 
इसे लोकतंत्र कहते हो 
…इसमें न लोक है 
…न कोई तंत्र है 
सिर्फ स्वार्थ है 
अहम् है 
निष्ठुरता है 
किसी पराजीवी की तरह 
जो जीवित या निर्जन में 
कोई फर्क नहीं करता 
और अपने पोषण के लिए 
बस सोखता चला जाता है 
जिजीविषा उसी कारक की 
जिसके निमित्त उसका अस्तित्व है 
और प्रयोजन करता है 
अपनी भावी नस्लों का 
जो राख से उसर्जित जीवन का भी 
शोषण कर सके 
अपने पोषण के लिए 

No comments:

Post a Comment