Tuesday, December 04, 2012

कड़ी


बड़ी हिम्मत की मैंने 
और सारे संदूक खोल डाले 
जिनमें समेटी थी 
कुछ भूली बिसरी कहानियां 
कुछ खट्टी मीठी यादें 
शायद
कहीं वक़त की धूल से लिपटी 
वो कड़ी मिल जाये 
जो मुझको तुमसे जोड़ती है 

कई मजमे मिले ,कई तन्हाईयाँ मिली 
ज़ख्म फिर हरे हुए ,दर्द उभर आये
मुस्कुराहट मिली
बड़ी संजीदगी से किसी कापी में छिपाई थी
जो जिल्द से धूल झाडी 
तो आँखों में पानी उतर आया 
वो धूप का कतरा भी मिला 
जो रह रह कर याद आता था 
अब भी तलाश जारी है 
शायद कोई रेशा, कोई धागा , कोई कड़ी मिल जाये 
जो मुझको तुमसे जोड़ती है

1 comment:

  1. this is just great, wish i could open a sandook like this looking for lost treasures

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