फिर लौट आया है
चिनार के सूखे पत्तों का मौसम
हैं सर्द हवाएँ
और आँखें पुरनम
वक्त ही कुछ ऐसा बदला
न मैं रहा मैं
न तुम रही तुम
फिर लौट आया है
चिनार के सूखे पत्तों का मौसम
जो संजोयी थी यादें
वो भी लगती हैं परायी
जैसे हों
मैंने
किसी और के आँगन से चुराई
कितने सौतेले अब
लगने लगे हैं वो जज़्बात
जो कभी जोड़ते थे
मुझको तेरे साथ
रही बांकी
ना कोई उम्मीद, ना कोई आस
ना रही तड़प कोई
ना कोई तलाश
तेरे
वो लब ,वो लफ्ज़
वो लम्स
वो लिबास
अब कुछ भी रहा न मेरा
जो हो तेरे पास
फिर भी
ना जाने क्यूँ
बारिशों में
ये पत्ते चिनार के
फिर से हरे हो जाते हैं
और जब पतझड़ देता है दस्तक
सूखते हैं
गिर जाते हैं
ये चिनार के पत्ते
ये चिनार के मजरूह सूखे पत्ते
गिरते है
सुलगते है
जलते हैं
धुवाँ हो जाते हैं
बस रह जाती है राख
खुद हो जातें हैं ख़ाक
फिर ऑंखें क्यूँ कर जाता हैं नम
चिनार के सूखे पत्तों का मौसम
wha an amagalmation of the beauty of autumn with relationships..just awesome
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