सबके दायरे होते हैं
तुम्हारे अपने हैं
और
मेरे अपने
और ये जरूरी नहीं
कि
जब हमारे दायरे स्म्केंद्रित होंगे
तभी
मैं और तुम अनुरूप होंगे
प्रकृति
मूल रूप से ही अराजक है
और अराजकता की उर्जा से ही निर्माण होता है
फिर तुम और मैं
एक दूसरे के
स्वभाव में
संवाद में
क्यूँ समरसता तलाशते हैं
क्यूँ हमारी विभिधता संरचनात्मक नहीं
शायद
अहम् कारक है
अभिलाषित अनुकूलन का
या फिर हठधर्मिता
जो प्रभुत्व के प्रयास का
सौहार्द के तर्कों से छालावारण करती है
जो
मैं तुम्हारे दायरों को सम्मान दूं
और तुम्हें मेरे दायरे स्वीकार हों
और हम दोनों के बीच
बिना किसी मोल भाव के
अपेक्षा के
अभिलाषा के
पारस्परिक श्रद्धा का मुक्त प्रवाह हो
तभी सृजन होगा
speechless! one doesnt have to be concentric circles or planets revolving around the same sun.Each is complete yet complete with each other too
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