Monday, November 12, 2012

तुम शायद ये समझ न सको

तुम
शायद ये समझ न सको
की क्योँ तुम मेरे लिए जरूरी हो
ये हो सकता है
कि तुमको इस बात का यकीन भी न हो
और तुम्हें इसमें फरेब के कतरे नज़र आयें
मगर फिर भी
मुझे लगता है कि तुम से कह ही दूं
कल किसने देखा है
हो , ना हो


शायद प्रारब्ध था
या फिर हालत ही कुछ ऐसे थे
कि ना चाहते हुए भी मैं तुम से जुड़ ही गया
कुछ था ऐसा तुम्हारे अल्फाज़ों में
जिस से मैं तुम से बंधता ही चला गया
और अब मैं चाहूं भी तो
निकल नहीं सकता
और मैं निकला भी नहीं चाहता
तुम्हारे और मेरे बीच
जो भी अनकहा है
शायद मुझे धड़कने नवाजता है


तुम्हारा दर्द , मुझे तकलीफ देता है
तुम्हारी मुस्कान मुझे ख़ुशी
मगर तुम्हारी हताशा
मुझे तोड़ देती है
सोचता हूँ की क्या करू ऐसा
की तुझे वो मुस्कान फिर मिल जाये
वो डिंपल तेरे गलों पर फिर खिल जाये


बहुत घुटन महसूस करता हूँ
इन ख्यालों पर लगी बंदिशों पर
मैं जानता हूँ
मुश्किल और मुमकिन के बीच
ज्यादा फासला नहीं होता
मगर दस्तूर ही कुछ ऐसे है
की इस दिवार को फांदने में
कई खराशें लगेंगी


मैं ये जानता हूँ
कि तुम्हारी दुनिया के रंग और हैं
और मेरा वजूद तुम्हारे लिए महज इतेफाक है
फिर भी
मैं दुआ करता हूँ अक्सर
कि अगर तेरे मांनिंद मौत भी आये
तो ईनाम होगी

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