जनता हूँ मैं
तू वक्त के उस पार है
तेरे मेरे बीच में
शीशे की एक दीवार है
देख सकता हूँ तुझे
पर छू नहीं सकता
न जाता हो तेरे दरमियाँ
ऐसा नहीं रास्ता
तू परस्तिश का सबब है
रूह का तू नूर है
महसूस करता हूँ तुझे
क्या हुआ जो दूर है
how lyrical
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