Tuesday, October 30, 2012

वो लड़की, जो तितलियों से डरती थी


वो लड़की 
जो तितलियों से डरती थी 

जाने 
अपनी जिंदगी में रंग कैसे भरती थी 

रातें सारी 
जाग जाग कर
सुबहों को कोसा करती थी 
ना जाने 
क्योँ रौशनी यूँ आँखिर उसे अखरती थी 

शायद 
काफ़िर आँखों से 
कुछ सपने देखा करती थी 
और उनको सजा हथेली पर 
फिर उनके संग बिखरती थी 

वो 
कब कहाँ ठहरती थी 
खुद में ही बहती रहती थी 
जाने 
अपनी जिंदगी में रंग कैसे भरती थी 

वो लड़की 
जो तितलियों से डरती थी

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