घर के किसी कोने में दबीं हैं
वो भूली बिसरी यादें
आँसूं से भीगे ख़त वो
गांठों से बुनी फरियादें
कुछ अधलिखे
कुछ पन्ने कोरे
कुछ सूखे फूल गुलाब के
यहीं कहीं पर दफन किये थे
पिंजर उस टूटे ख्वाब के
यूँ तो
है बीत गए ना जाने
कितने -कितने साल
फिर भी दीवारों पर है लटके
अब भी वो बेताल
किया झाड - फूँख
किया जंतर- मंतर
ओझे कई बुलाए
पर छोड़ के अपना घर- आँगन
कोई दूर भी कैसे जाए
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