Wednesday, July 18, 2012

यादें

घर के किसी कोने में दबीं हैं 
वो भूली बिसरी यादें 
आँसूं से भीगे ख़त वो 
गांठों से बुनी फरियादें 

कुछ अधलिखे 
कुछ पन्ने कोरे
कुछ सूखे फूल गुलाब के 
यहीं कहीं पर दफन किये थे 
पिंजर उस टूटे ख्वाब के 

यूँ तो 
है बीत गए ना जाने 
कितने -कितने साल 
फिर भी दीवारों पर है लटके 
अब भी वो बेताल 

किया झाड - फूँख
किया जंतर- मंतर 
ओझे कई बुलाए 
पर छोड़ के अपना घर- आँगन 
कोई दूर भी कैसे जाए 

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