Monday, May 28, 2012

वंडर तुम ...

तुमको 
धूप में निकलना है
याद रखना
जैसे जैसे दिन चढ़ेगा
गर्मी और बढ़ेगी
दोपहर तक
सुबह की नमी सूख जाएगी
और तपिश चुनौती बनकर
तुम्हारे धैर्य को टटोलेगी 

जब सूरज सर पर चढ़ेगा
तब ये छाया
जो अब तक तुम्हारी हमजोली है
तुम्हारे क़दमों में सिमट जाएगी
और फिर
दिन ढलने तक की लम्बी दूरी
तुमको 
अकेले ही तय करनी है

गर्मी तुम्हें तपाएगी
और लू तम्हें झुलसाएगी
शायद तपती जमीन भी 
मरीचिका बन जाये
और तुम्हें दिग्भ्रमित करे
मगर तुम ये याद रखना
की हर चमकती चीज 
सोना नहीं होती

हो सकता है
तुम्हारे पैरों में छालें पड़ जाएँ
और धूप से तन झुलस जाये
शायद सूखा गला तुम्हारे निश्चय को डगमगाए
और भूख प्यास तुम्हारे निर्णय पर हावी होने लगे
हो सकता है
कि सपनों के रंग आँसूं बन कर बह जाये
और बहता पसीना बदन तोड़ दे
मगर तुम अपना निश्चय अखंड रखना 
और चलते चले जाना

ये रास्ता मुश्किल भी है
लम्बा भी
और इसमें कई मोड़ ऐसे भी आएंगे 
जो तुम्हारे आत्मविश्वास को झंजोड़ देंगे  
मगर तुम बढती चले जाना
दुपट्टे से सर ढँक कर
और आँखों में संकलप संजो कर
कदम दर कदम
शायद इस सफ़र के अंत में
तुमको वो मंजिल न मिले
जिसे पाने तुम निकली थी
मगर मैं जानता हूँ
कि
तुम खुद को जरूर पा लोगी..

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