कितनी बातें हैं
जो
तुम से कहनी हैं
अगर
मिलो कहीं
आँखिर
कब तक मैं यूँ ही
चुप की सलीब से टंगा रहूँगा
काश तुम
मुझको समझ पाते
फकत इशारों से
तो घुटन का मेरी
तुमको भी एहसास होता
टंगा हुआ हूँ
मैं जिस सूली पर
उसका एक सिरा
तुम्हारा हाथ होता
फिर मुक़द्दस
हाथों से तुम्हारे
इनायत फैसला होता
की
सजा भी
रिहाई होती
इतनी बेरुखी के बाद
sazaa bhi rihaai - beautiful as usual
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