Tuesday, February 21, 2012

और लौट कर के तुम वहीँ पर आ गए


 जाने तुम फिर से क्योँ लौट आते हो 
उन्हीं क़दीम चाक -चौबारों में
जहाँ पर तुम बिछड़े थे - खुद से 
वो शिद्दतों से भरी, शाम जब ढली थी 
जब स्याह था अँधेरा और तंग सी गली थी 
वो रात - तुमने जो काटी थी अपने मजार पर 
मातम के सर्द कफ़न से खुद को लपेट कर  
फिर चल पढ़े थे आघे अपनी तलाश में 
बंद मुट्ठियों में अपनी खुद को समेट कर 

क्यों खुल रही है अब ये उंगलिया तुम्हारी    
इतना जानते हो तुम भी सुबह करीब है 
लिखी हुई शिकन है चेहरे पर क्योँ तुम्हारे 
क्या हौसला तुम्हारा... इतना गरीब है !
थोड़ी सी जो हवा चली और मन मचल गया 
यादों की लू बही और यकीं पिघल गया 
उठे थे जो कदम बस वो लडखडा गए 
और लौट कर के तुम वहीँ पर  गए 

ये जान लो तुम कि बिता लौट कर ना आयेगा 
उससे जितना लड़ोगे तुमउतना सताएगा 
 जीतने देगा तुम्हे तुमको हराएगा 
इतना करो तुम कल को कल ही रहने दो 
और खुद को तुम जिंदगी में बहने दो 
खुद पर करो यकीन, खुदा पर ऐतबार 
करो इश्क जिंदगी से, जिन्दादिली से प्यार 
तो फिर से नयी सुबह जरूर आयेगी 
और ये जिंदगी फिर मुस्कुराएगी 

No comments:

Post a Comment