Tuesday, February 07, 2012

खोना पाना


और क्या पा सकूँगा मैं 
तुझ से मुक्कदस 
वही दरोदीवार 
रोगन से सजे हुए 
तराशे कांच के फानूस
छत पर धजे हुए 
कीमती कालीन 
पैरों पर बीचे हुए 
मखमली लिबास 
जिस्मों पर खींचे हुए 
सोने की चमक 
चांदी की दमक 
सिक्कों की खनक  
वैभव की धनक 
अंधी इच्छा का शोर
बस पा लेने का जोर 
ना बुझने वाली प्यास 
एक अंतहीन तलाश 
सांसों सासों पर झूलती 
झूठी जन्नत की आस 
तू नहीं है इन पैमानों में 
तू है मन का विश्वास 
जो रहता है यहीं कहीं 
मेरे वजूद के पास 

और क्या खो सकता हूँ मैं 
तुझसे जरूरी 
तू तो है अक्षत प्रकाश 
आबद्ध हवा सा एहसास 
ना सन्नाटा तू , ना शोर कोई 
ना बंधन तू ,ना डोर कोई 
ना जबर है तू ,ना जोर कोई 
ना ओर है तू ,ना छोर कोई 
ना तू पीर कोई ना पैगम्बर 
मंदिर मस्जिद ना तेरा घर 
जहाँ झुके सजदे में सर 
वहीं तू आता है नज़र 
तू बच्चों की मुस्कान है 
तू गीता तू ही कुरान है 
तू व्रत है तू रमजान है 
तू भजन तू ही अज़ान है 
मैं जो भी हूँ बस तुझ से हूँ 
तू ही मेरी पहचान है 
तू होने का है एहसास 
जो है मेरे वजूद के पास 

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