Saturday, November 12, 2011

केसर

सुबह की ओस जब पहाड़ी मैदानों पर
उम्मीद बन कर पिघलती है
तब कहीं जा कर
केसर की काली खिलती है
सुर्ख रंग लहू का ले कर
स्याह रात करवट बदलती है
तब शायद दुवा कोई
नीललोहित पुष्प में बदलती है
दर्द कश्मीर का वादी का
जब मेहनत में ढल जाता है
केसर से रिसता सुर्ख रंग
सच ...इसी से आता है
सपनो की फुलवारी को जब
सर्द हवा सुलगती है
मैंने ये जान है की वो
केसर की खुशबू बन जाती है

No comments:

Post a Comment