Wednesday, November 30, 2011

मुझे मिटटी बन जाने दो

मुझे मिटटी बन जाने दो 
कुछ काम किसी के आने दो 
किसी किसान को अनाज उगने दो 
किसी फकीर की झोली भर जाने दो 
दुआ का ऐसा उठे सैलाब उसके मिजाज से 
दर्द के हर कतरे को निगल जाने दो 
मुफलिसी को पिघल जाने दो 
ख़ुशी को लौट के घर आने दो 
माँ को लोरी कोई सुनाने दो 
बच्चों को नीद में ढल जाने दो 
कुछ काम किसी के आने दो 
मुझे मिटटी बन जाने दो 

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