वो कल सोया था
उम्मीद सिरहाने लेकर
की सपनों में ही
शायद
कुछ बदल जाये भूख भी उसकी थी बासी हो चली
प्यास इतनी की वो जल जाये
उधडे लिबास में तन आतिश
इस्पात छुए, पिघल जाये
आखों में दहकता कुफ्र का आलम
अंजाम मिले तो निगल जाये
वो कल सोया गया
उम्मीद सिरहाने लेकर
की कब्र में ही
शायद
कुछ बदल जाये
की सपनों में ही
शायद
कुछ बदल जाये भूख भी उसकी थी बासी हो चली
प्यास इतनी की वो जल जाये
उधडे लिबास में तन आतिश
इस्पात छुए, पिघल जाये
आखों में दहकता कुफ्र का आलम
अंजाम मिले तो निगल जाये
वो कल सोया गया
उम्मीद सिरहाने लेकर
की कब्र में ही
शायद
कुछ बदल जाये
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