Tuesday, November 29, 2011

...जहां मुझको खुदा मिले

मैं कहाँ जाऊं
जहां मुझको खुदा मिले
जहाँ बंदिशें इत्तेमाद की हों
न इन्सान जुदा मिले
न भूख हो सोई
न प्यास हो रोई
खिला अमन हो बन कर धूप
जिसे मिलूँ
हो उस के नूर में
खिला हुआ बस तेरा रूप

दर्द दावा
बन जाये जहाँ पर
जहाँ तड़प में
चैन मिले
जख्म रूह को ढोता
न शख्स कोई बेचैन मिले

मैं कहाँ जाऊं
जहाँ
बस फकीरी जात हो
दिन तेरे करीब गुजरे
तेरे नजदीक रात हो

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